नजाने क्या चाहती है ये जिंदगी.....?
नजाने कैसे बीत रही है ये जिंदगी...,
चंद ठोकरे खाकर भी जीत रही है ये जिंदगी....!
इस भागदौड़ भरी दुनिया में, बस इसका खयाल रखु
फिर भी खुद ही खुदसे मुह फेर रही है ये जिंदगी....!
नजाने कैसे बीत रही ....।
पता नाही आखरी मुकाम क्या है इस बेनाम मोहोब्बत का
बस मोहोब्बत पाने के लिए तडप रही है ये जिंदगी...!
नजाने कैसे बीत रही ....।
भगवान ने हमे सबकुछ दिया, जो एक इंसान को चाहिए
नजाने इसे क्या चाहिए, भगवान को ही टोक रही है ये जिंदगी....!
नजाने कैसे बीत रही .... ।
सबकुछ इस जिंदगी के लिए ही चल रहा था और अभिबी चल रहा है
पता नाही फिर भी हमसे क्यों रूठ रही है ये जिंदगी....!
नजाने कैसे बीत रही .... ।
-- ग. सु. डोंगरे
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