अवघाची संसार....!

व्यक्तिमत्व घड़वावे ऐसे,
जैसे तयाचे पाढ़े गाईल जग...!

मूख बोलावे ऐसे,
जैसे तयाहुन वाहील अमृत....!

विचार असावे ऐसे,
जैसे आईचे लेकुरा परी....!

जग बघावे ऐसे,,,
जैसे पाही परमार्थ पांडुरंग.....!

                                   - ग. सु. डोंगरे

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