जहाँ के रंग, कूछ ऐसे भी......!
पुरा जहाँ तकलीफ में है। और खुदा भी मेहेफुज नहीं है। आज वक्त ने ऐसी बाजी पलट ली, की अपने भी अपनों से मूह फेर रहे है। जहां कंधे से कंधा मिलाकर काम चलता था, वहां हातमें हात मिलानेसे भी डर रहे है। सबकों बांध लिया है कुदरत नें अपनी जंजीरोसे, किसींको खाणे के लिये अन्न नहीं, तो किसको प्यास बुझानेके लीये पाणी नहीं है। कुछ चिजे खरीद कर जिंदगी मजे से जी रहें थे हम, जिंदगी जीने के लीये कभी सोचा ही न था, के चार दिवारों के अंदर का सुना पन भी मिटाना जरुरी होता है। जिंदगी भर पैसो के पिछे भाग भाग कर थक गये लोग, आज ना वो रुपया काम आ राहा, और ना ही ऊस रुपये से खुशीया खरेदी जा रही है। ना काम आयी कोई दुआ, और ना ही कोई मंदीर, मस्जित हो या चर्च, आज लाखों की जिंदगी बच रही क्योकी, डॉक्टर, नर्स, पुलीस भगवान बनकर लड रहे है। - ग. सु. डोंगरे