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Showing posts from June, 2019

शुभ मंगल सावधान....!

खरच ही घड़ी इतकी घातक असते..! आजपर्यंत कळालच नाही, शुभमंगल सावधान म्हंटल्यावर मुठितला अक्षदा समोर फेकायचा इतकेच माहिती होते. पण आज लग्नाच वय झाल तेव्हा कुठे कळतय की प्रत्येक लग्नात गेल्यावर बुवा आवर्जून सांगतो की "सावधान" ह्याचा अर्थ असा की प्रत्येकची वेळ येईल सावधान रहा....! बरं सावधान तर सावधान पण का? शुभमंगल आहे, दोन मन एकमेकांशी जुळनार आहेत, सर्व परिवार एकत्र येणार, मज्जा मस्ती दोन परिवार एकमेकांशी तड़जोड करून का होईना पण एकमेकांशी नाते सबंध बांधनार, सगळीकडे आनंदी आनंद माजनार,,,,,, तरी पण का??? का सावधान व्हायचं????? खुप दिवस ह्या प्रश्नांनी डोक्यामधे नंगानाच केला,            थोड़ा काळ गेला, हळू हळू बुद्धिमधे प्रकाश पडला मग कळालं की का सावधान ते,,           अर्थातच लग्न आणि लग्नानंतरच सुखी जीवन हे सहजासहजी नाही मिळत म्हणून सावधान रहा....!            बाप पोरीसाठी एक न एक घर, गाव, एवढंच नाही तर बरेचशे ऊंबरठे झिजवतो, का तर मुलगा चांगला असावा, त्याच्या घरी शेती असावी, त्याचे नातेवाईक चांगले असावे, घर आसावं, सगळ्यात महत्वाचं म्हणजे त्याला सरकारी नोकरी असावी, चार लोकं चांगल

नजाने क्या चाहती है ये जिंदगी.....?

नजाने कैसे बीत रही है ये जिंदगी..., चंद ठोकरे खाकर भी जीत रही है ये जिंदगी....!                                           इस भागदौड़ भरी दुनिया में, बस इसका खयाल रखु फिर भी खुद ही खुदसे मुह फेर रही है ये जिंदगी....!                                            नजाने कैसे बीत रही  ....।                                            पता नाही आखरी मुकाम क्या है इस बेनाम मोहोब्बत का बस मोहोब्बत पाने के लिए तडप रही है ये जिंदगी...!                                             नजाने कैसे बीत रही  ....। भगवान ने हमे सबकुछ दिया, जो एक इंसान को चाहिए नजाने इसे क्या चाहिए, भगवान को ही टोक रही है ये जिंदगी....!                                              नजाने कैसे बीत रही  .... । सबकुछ इस जिंदगी के लिए ही चल रहा था और अभिबी चल रहा है पता नाही फिर भी हमसे क्यों रूठ रही है ये जिंदगी....!                                              नजाने कैसे बीत रही   .... ।                                         -- ग. सु. डोंगरे

अवघाची संसार....!

व्यक्तिमत्व घड़वावे ऐसे, जैसे तयाचे पाढ़े गाईल जग...! मूख बोलावे ऐसे, जैसे तयाहुन वाहील अमृत....! विचार असावे ऐसे, जैसे आईचे लेकुरा परी....! जग बघावे ऐसे,,, जैसे पाही परमार्थ पांडुरंग.....!                                    - ग. सु. डोंगरे