बस फुरसत ही फुरसत...!

फुरसत....!

कितना अजीब लब्ज है ये फुरसत,
आजके जमाने में किसीको वो मिलता नाही,
पर कभी कभी ऐसे भी दिन आतें है,
तब हमे फुरसत से निकलना पड़ता है,
तो कभी फुरसत ही फुरसत होती है।

ऐसा ही फ़ुरसत का एक दिन आया, जीस दिन मैने बोहोत कुछ पाया।

वो तुम्हारी बेवकूफ यादें, जिनमें मैं हमेशा के लिए खोना चाहता था।

वो जिंदगी के सबसे हसीन पल, जो मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहता था।

वो चाहत, जिसे पाने के लिए मैं बचपन से तरसता रहता था।

वो लब्ज, जिसे मैं तुम्हारे साथ गुफ्तगू करने में लगाना चाहता था।

वो उम्मीदें, जो मैं हमेशा तुमसे रखना चाहता था।

वो भरोसा, जिसे मैं हमेशा जितने में जुड़ा हुआ रहता था।

वो जिंदगी, जिसे मैं आज तक ढूंढता रहता था।

वो सब कुछ फुरसत से मुझे मिला, बस अब और क्या चाहिए?

जिंदगी में फुरसत हो तो जिंदगी हसीन है।
और फुरसत में ही जिंदगी का मजा लिया जा सकता है।
ये लाजवाब रिश्ता है, फुरसत और जिंदगी का!

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