दोस्ती के रंग कुछ ऐसे भी....!?
पता नही क्यो? पर सब अपना-अपना देखते है।
बाकी कुछ भी हो, सब अपना ही सोंचते है।
(शायद मुझे भी ऐसा ही जीना चाहिए।)
हम किसी को कितना भी अच्छा दोस्त क्यो न माने, वो तो अपनी रंग से ही जीते है। पर बेवजह हम उनके रंग में रंग मिलाकर जीने की कोंशिष करते रहते है। शायद इसलिए की उन्हें हम पसंद आये, शायद उससे ही हमे दोस्ती निभाने जैसा महसूस हो जाए। शायद हमारी दोस्ती टिकी रहे। शायद दूसरों की दोस्ती की तरह हमारी दोस्ती ना हों, जो की सिर्फ किसी वजह से होती है।
पर एक चीझ समझ में आई, की जो हम कर रहे है वो दरासल बेवकूफी है। क्योकि कोई नही समझता हमे, और शायद जो समजते है वो उतनी कीमत नही रखते हमारी, जितनी हम उनकी रखते है। सोचता था की दोस्ती से बढ़कर कोई चीझ नहीं होंती, पर यहा तो सब अपनी अपनी जिंदगी जिनेपर तुले हुए है। क्या इनमें कोई सही या अच्छा दोस्त है?? कुछ दोस्त हमारे लिए करते भी है पर कभी कभी वही दोस्त ये भी महसूस कराते है की उनके जिंदगी में हमारी अहमियत उनके खुद से ज्यादा नही, और क्यो होनी चाहिए!? ऐसा तो नही की हम जैसे हो, वैसे ही हमारे साथ सब लोग होंगे!?. पर एक बात है, जो शायद कभी कोई समझ नही सकता, और वो है खुद के जिंदगी में अपने दोस्त की अहमियत! पता नही शायद मैं गलत सोंच रहा हूं, अगर ऐसा हो तो ये सोच जल्द से जल्द हमारे दिमाग से निकल जाए। और अगर ये सही है, तू खुद को बदलने का वक्त आ गया है।
जिंदगी में ऐसे बोहोतसे लोग आकर जाते है, कोई अच्छे तो कोई बुरे, बुरे का मतलब की जो हमारे हिसाब के नही, उसमेंसे कोई करीबी दोस्त बन जाते है। तो कोई सिर्फ दोस्त बन जाते है। पर इन सब में हमेशा एक बात नजर आई, के जो भी करीबी, याने जिसे हम बेस्ट फ्रेंड कहते है, उनके बारे में। वो ऐसी, की हर एक अपनी अपनी वैलिडिटी के साथ आए थे। बोहोतसे पल अच्छे गुजर जाते है, तब अचानक कोई तो तूफान आता है, और तबाही मचा कर जाता है। उस तबाही की वजह से सब बिखर जाता है, और उसमे वो कही और तो हम कही और, किसी के साथ मुलाकात होती तो किसी के साथ बातें भी मुश्किल, और ऐसे ही जो भी बेस्ट फ्रेंड था वो सिर्फ दोस्त, या कोई पहचान वाला, और तो कोई अंजान इंसान बन गया है।
इन सब में ये उन्हीके साथ हुआ है, की जिन्हें हमने करीब किया, दोस्त का बेस्ट फ्रेंड बना दिया। अब कभी ऐसा लगता है, की इसमें हमारी गलती है। क्योकि दोस्त दोस्त होता है, पर जमाने ने बनाये जाल में हमनें भी फस कर किसीको अच्छा दोस्त तो किसीको सिर्फ दोस्त मान लिया था। और इसी की वजह से जो भी अच्छा दोस्त याने बेस्ट फ्रेंड हो रहा है, वो कोई न कोई वजह से बिछड़ रहा है। और इस जुदाई का दर्द अब सहा नहीं जाता, तो बस आजसे ये सोच रहे है, के सब एक समान, कोई एक से अच्छा है, की सभी एक बन जाए, तो कोई बिछड़ने का चांस ही नही, जो कोई हमारे हिसाब में नहीं समाते वो जिंदगी से दूर ही ठीक है। पता नही ये मेरा ये फैसला सही है, या गलत है, पर ये अगर मुझे खुश रखता हों, तो जरूर ये मरते दम तक रहेगा।
-- ग. सु. डोंगरे
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